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उत्तराखंड

उत्तराखंड में किसानों ने हिमालयी जड़ी बूटियां के उत्पादन में बढ़ाई रूचि
जड़ी बूटियों के उत्पादक किसान योगेश रावत ने सरकार से और सहायता देने की अपील की

आकाश श्रीवास्तव

थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़ नेटवर्क

14 दिसंबर 2021

उत्तराखंड के हिमालयी इलाकों में पाई जाने वाली बेशकीमती जड़ी-बूटियां अब खेतों में भी उगने लगी हैं। तमाम बीमारियों में काम आने वाली संजीवनी सरीखी इन जड़ी-बूटियों की खेती से अच्छा मुनाफा मिलने के कारण परंपरागत खेती करने के बजाय किसान इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। राज्य के हिमालयी क्षेत्र से सटे गांवों में हजारों परिवार जड़ी-बूटी की खेती कर रहे हैं। उत्तराखंड राज्य के उच्च हिमालयी क्षेत्र में कुटकी, अतीस, सालमपंजा, जटामासी, गंदरायण, वज्रदंती, कूट, चिरायता, वन तुलसी, सिचवान पेपर, पहाड़ी हल्दी, भांगदाना सहित कई बहुमूल्य जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। तमाम बीमारियों के उपचार में काम आने वाली इन जड़ी-बूटियों का पहले सीधा दोहन किया जाता था।
योगेश रावत, जड़ी बूटियों के व्यापारी।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोग माइग्रेशन के समय इन जड़ी-बूटियों को घाटी में लाते थे। अधिक दोहन होने के कारण जड़ी-बूटियों के संकट में पड़ने के बाद सालमपंजा, जटामासी सहित कुछ अन्य जड़ी-बूटियों के दोहन व बिक्री को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया। इनका दोहन केवल नाप भूमि में खेती करने के बाद ही किया जा सकता है। एक अनुमान के तहत लगभग 6 हजार किसान खेती कर रही हैं। सीधे जड़ी बूटी की अच्छी मांग को देखते हुए वर्तमान में बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग के हिमालयी क्षेत्र से लगभग छह हजार परिवार इन जड़ी-बूटियों की खेती कर रहे हैं। 

उत्तराखंड के गांव पोस्ट बोना तहसील मुंशीयारी पिथौरागढ़ के रहने वाले योगेश रावत ने थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़ से बात करते हुए तमाम जानकारियों को साझा किया।  जड़ी-बूटी के साथ ही नाप भूमि में टॉनिक, मधुमेह की दवा बनाने के काम आने वाला किलमोड़ा उगाकर अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं। उत्पादित जड़ी बूटी को भेषज संघ, एचआरडीआई के माध्यम से मंडी में बेचा जाता है। जंबू, गंदरायण 800-1,000 रुपये किलो, जबकि कुटकी 500 रुपये किलो के हिसाब से बिकता है। जड़ी-बूटी की कीमत ग्रेडिंग के आधार पर तय की जाती है।

कुटकी नामक जड़ी बुखार, पीलिया, मधुमेह, न्यूमोनिया में काम आती है। लीवर से संबंधित जितने भी टॉनिक बनते हैं, उनमें कुटकी की मात्रा जरूर होती है। डोलू गुम चोट में, मुलेठी खांसी में, अतीस पेट दर्द में, सालमपंजा शारीरिक दुर्बलता में लाभदायक होता है। गंदरायण कब्ज, गैस सहित पेट की तमाम समस्याओं में रामबाण साबित होता है। इसे राजमा की दाल में विशेष तौर पर प्रयोग किया जाता है। जंबू की तासीर गर्म होने के कारण इसे दाल में डाला जाता है। भोजपत्र, रतन जोत सहित कई प्रकार की जड़ी ऐसी हैं, जो धूप में प्रयोग होती हैं। 

योगेश रावत ने बताया कि आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल होने से बाजार में जड़ी-बूटियों की अच्छी मांग है। परंपरागत खेती के बजाय जड़ी-बूटी की खेती करने से किसानों को अच्छा लाभ मिलता है। इसे देखते हुए किसानों को जड़ी-बूटी की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए किसानों को समय-समय पर प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके अलावा योगेश रावत ने पहाड़ी इलाकों में सरकार से और सुविधा मुहैय्या कराने की मांग कि जिसमें सड़क निर्माण प्रमुख रूप से शामिल है। उन्होंने कहा कि पहाड़ी इलाकों में सड़क सही न होने की वजह से आवाजाही में बहुत परेशानी होती है। 

इसके अलावा योगेश रावत ने परिवहन की व्यवस्था, उत्पादों की ब्रांडिंग, कर्ज में सहयोग जैसी प्रमुख बातें शामिल हैं। जिससे उत्तराखंड से जाने वाला युवक फिर से पहाड़ की तरफ लौटे और पहाड़ के विकास में अपना योगदान दे सके। 



योगेश रावत, जड़ी बूटियों के व्यापारी।




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