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हिंदी दुनिया में बोली जाने वाली सबसे बड़ी भाषाओं में से एक है

रवींद्र सिंह शेरोन

नई दिल्ली

16 सितंबर 2023

दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। भारत की करीब 57 फीसदी से ज्यादा आबादी हिन्दी बोलती और समझती है। आजादी के आंदोलन के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ पूरे देश को एकजुट करने में हिन्दी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही। संविधान सभा में भी हिन्दी को लेकर काफी लंबी बहस के बाद इसे राजभाषा के रूप में अपनाया गया और आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। साथ ही अनुच्छेद 351 में हिन्दी भाषा के विकास से संबंधित निर्देश दिए गए हैं।

दुनियाभर में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने के लिए हर साल दस जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस का आयोजन किया जाता है। दस जनवरी का दिन इसलिए चुना गया है कि 1975 में इसी दिन नागपुर में पहली बार विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था और इसी दिन की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में साल 2006 में भारत सरकार ने पहली बार इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था। इसके बाद से हर साल दस जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है।

ये भी सच है कि आजादी के बाद से हिन्दी का प्रचार-प्रसार लगातार बढ़ता ही जा रहा है। बावजूद इसके हिन्दी अभी तक राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं पा सकी है। हिन्दी के पक्ष में तमाम तर्कों के बावजूद यह एक कटु सत्य यह भी है कि देश में तकनीकी और आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ अंग्रेजी ने पूरे देश को अपने वश में कर लिया है। हिन्दी, देश की राजभाषा होने के बावजूद देशभर में अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है। हिन्दी जानते हुए भी ज्यादातर लोग हिन्दी में बोलने, पढ़ने या काम करने में हिचकिचाते है। 

हालांकि सरकारी और संस्थागत प्रयासों की वजह से बीते कुछ दशकों में, भारत और दुनिया में हिन्दी को लेकर लोग संजीदा हुए हैं। आज हिन्दी पूरी दुनिया में बोली जाने वाली चौथी बड़ी भाषा है। भारत से बाहर मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो में तो हिन्दी बड़े पैमाने पर बोली जाती है। बावजूद इसके, हिन्दी बदलते समाज के संवाद की भाषा, नहीं बन पाई है। हिन्दी का, रोजगार से न जुड़ पाना, भूमंडलीकरण के दौर में चुनौतियों का सामना न कर पाना, हिंदी और हिन्दी भाषियों के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है। हालांकि तमाम चुनौतियों के बावजूद दुनिया के दूसरे कोने में पहुंच बनाने में हिंदी कामयाब हुई है।
 
आज दुनियाभर में 100 करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी बोल या समझ लेते हैं। इससे हिन्दी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान बनाने में कामयाब हुई है। यूनेस्को की सात भाषाओं में हिन्दी को भी मान्यता प्राप्त है। इसके साथ ही हिन्दी सिर्फ भाषा ही नहीं बल्कि एक बाज़ार बन चुकी है जिसमें साहित्य से लेकर टीवी और फिल्म जैसे बड़े कारोबार शामिल हैं। लेकिन इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद हिन्दी की स्वीकार्यता उतनी नहीं है जितनी इसकी गौरवशाली इतिहास, व्याकरणिक शुद्धियां और शानदार उपलब्धियां है। इसके लिए अभी लंबी लड़ाई जरूरी लग रही है। खासकर भूमंडलीकरण के दौर में अंग्रेजी से प्रतिस्पर्धा हिंदी को काफी पीछे ले जा रही है। 

दरअसल हिन्दी को दो तरफा प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ रही है। वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा तो है ही, हिन्दी को देश में भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। जमा तलाशी, फौजदारी, दरियाफ्त, मौजा, हुकम, हिकमत, अमली, मुखबिर, मजमून, फिकरा, तहरीर, शहादत... आदि अनेक ऐसे शब्द हैं जिसे हिंदुस्तान का ज्यादातर व्यक्ति जानता है, और जीवन में कभी न कभी पुलिस थानों और कचहरी में उसका पाला भी इनसे पड़ता है। हर रोज हजारों लाखों बार ये शब्द काम में आते हैं। जरूरी नहीं है कि इन शब्दों को हटा दिया जाए या खत्म कर दिया जाए। लेकिन इनके साथ कम से कम हिन्दी के वैकल्पिक शब्दों के इस्तेमाल पर भी तो जोर दिया जा सकता है, ताकि इनके साथ-साथ इनके समानार्थक हिन्दी के शब्दों को लोग जान पाएं और उसका प्रचार-प्रसार हो सके। दरअसल, हिन्दी अनुवाद की नहीं संवाद की भाषा है। किसी भी भाषा की तरह हिन्दी भी मौलिक सोच की भाषा है। ये भी सही है कि समय के साथ-साथ हिन्दी पहले के मुकाबले बहुत बदल गई है। एक ज़माने में जिस तरह की हिन्दी बोली, और लिखी जाती थी वो अब चलन से बाहर हो गई है। जरूरत के हिसाब से, इसमें कई बदलाव आए हैं। हिन्दी में ये बदलाव, दशक दो दशक की बात नहीं है बल्कि हिन्दी भाषा, एक हजार से ज्यादा सालों का इतिहास, समेटे हुए है।








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