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महिला आरक्षण विल में अड़चन नहीं

रविन्द्र सिंह शेरोन

नई दिल्ली

19 सितंबर 2023

आज़ादी मिलने के 76 साल भारतीय संसदीय व्यवस्था में आधी आबादी को अपना हिस्सा मिलने की उम्मीद जगी है. जनसंख्या में हिस्सेदारी क़रीब आधी होने के बावजूद महिलाओं को विधायिका में पर्याप्त हिस्सेदारी न मिल पाना हमेशा से देश की शासन व्यवस्था पर सवालिया-निशान के तौर पर रहा है। संसद भवन में 19 सितंबर से कामकाज की शुरुआत हुई और यह दिन एक ख़ास वजह से हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।

लोकतंत्र के प्रमुख स्तंभ विधायिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की नज़र से इस दिन लोक सभा में नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) विधेयक, 2023 पेश किया गया. यह संविधान संशोधन विधेयक संसद के निचले सदन लोक सभा और राज्यों के विधान सभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण को सुनिश्चित करने से जुड़ा है।
ऐसे तो 1996 से विधायिका में महिला आरक्षण को लेकर प्रयास हो रहे हैं, लेकिन उसे अमली जामा पहनाना किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं हुआ था. मौजूदा व़क्त में नरेंद्र मोदी सरकार जिस स्थिति में है, उसके मद्द-ए-नज़र अब एक तरह से तय हो गया है कि लोक सभा और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी सीटें आरक्षित हो जाएंगी. यहां पर एक बात ग़ौर करने वाली है कि इस विधेयक के जरिए लोक सभा और विधान सभाओं में ही महिला आरक्षण लागू होगा, संसद के उच्च सदन राज्य सभा और राज्यों के विधान परिषद में नहीं।

हालांकि अभी भी कई पड़ाव हैं, जिनको पार करना है. सबसे पहले तो यह विधेयक एक संविधान संशोधन विधेयक है, जिसे संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए. इस पैमाने पर तो अब 128वें संविधान संशोधन विधेयक के सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं दिख रही है. तक़ाज़ा-ए-वक़्त तो यही कहता है कि अब अधिकांश राजनीतिक दलों के लिए इस विधेयक का समर्थन करना मजबूरी है. जिस तरह से दूसरे कार्यकाल के आखिरी साल में नरेंद्र मोदी सरकार इस मुद्दे पर संजीदगी दिखा रही है, उससे लगभग तय है कि महिला आरक्षण से जुड़े इस विधेयक के क़ानून बनने में कोई ख़ास रुकावट नहीं आने वाली है.








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